मोहब्बत के रिश्ते कितने अजीब होते है
दूर कितने भी हो लेकिन कितने करीब होते है
हम मोहब्बत में लुट गये तो क्या
ये तो अपने अपने नसीब होते है
ठुकरा के उसने मुझे कहा कि मुस्कुराओ
मैं हंस दिया सवाल उसकी ख़ुशी का था
मैंने खोया वो जो मेरा था ही नहीं
उसने खोया वो जो सिर्फ उसी का था
रोज़ तेरा इंतज़ार होता है, रोज़ ये दिल बेक़रार होता है, काश तुम ये समझ सकते की, चुप रहने वालों को भी किसी से प्यार होता है
बड़ा मज़ा आता है उसे बार-बार मुझे सताने में
क्यो भूल जाती है कि नहीं मिलेगा
कोई मुझसा चाहने वाला इस जमाने में
नहीं आए यकीं तो फिर आज़माकर देख लेना
कुछ बात अलग है इस दीवाने में
तारीफ नहीं करता खुद की... मगर ये सच है
कोई कसर नहीं छोडूंगा तेरा साथ निभाने में।
दिल की बातों को आज कहना है तुमको,
धड़कन बनके तेरे दिल में रहना है हमको,
कही रुक ना जाए यह मेरी साँसें,
इसलिए हर पल तेरे साथ जीना है हमको।
चलो फिर से प्यार कि शुरूवात करते है
क्यों हम बिछड़े थे वही बात करते है
न गुनाह तुमने किया न गलती मेरी थी
दूरियाँ पैदा तो सिर्फ हालात करते है
इक पल में क्यों तु मुझ से रूठ गयी
सोच कर मेरे नैना बरसात करते है
बेशक तुम मेरी बातों पर यकीन न करो
पर हम तुम्हे याद दिन रात करते है
न अब तुम मुझ से कभी जुदा होना
जुदाई में हम पैदा बुरे ख्यालात करते है
नज़र से दूर हैं फिर भी फ़िज़ा में शामिल हैं
की तेरे प्यार की खुशबू हवा में शामिल हैं
हम चाह कर भी तेरे पास आ नहीं सकते
की दूर रहना भी मेरी वफ़ा में शामिल हैं
उनकी फ़ितरत है वो दर्द देने की रस्म अदा कर रहे हैं
हम भी उसूलों के पक्के हैं दर्द सहकर भी वफ़ा कर रहे हैं
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
मोहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं
तबस्सुम इत्र जैसा है हँसी बरसात जैसी है
वो जब भी बात करती है तो बातें भीग जाती हैं
तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है
तुम्हें जब गुनगुनाता हूँ तो रातें भीग जाती हैं
ज़मीं की गोद भरती है तो क़ुदरत भी चहकती है
नए पत्तों की आहट से भी शाख़ें भीग जाती हैं
तेरे एहसास की ख़ुशबू हमेशा ताज़ा रहती है
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती हैं
तेरे प्यार मे दो पल की ज़िंदगी बहुत है
एक पल की हँसी और एक पल की खुशी बहुत है
ये दुनिया मुझे जाने या ना जाने
तेरी आँखे मुझे पहचाने यही बहुत है
मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा
तेरा वादा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा
मुझको समझाओ न मेरी जिंदगी के असूल
एक दिन मैं खुद ही ठोकर खा के संभल जाऊँगा
नज़रें मिले तो प्यार हो जाता है
पलकें उठे तो इज़हार हो जाता है
ना जाने क्या कशिश है चाहत में
के कोई अनजान भी हमारी ज़िन्दगी का हक़दार हो जाता है।
तुम गुज़ार ही लोगे ज़िन्दगी, हर फन में माहिर हो
पर मुझे तो कुछ भी नहीं आता, तुम्हे चाहने के सिवा
शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत नही कर सकता
मेरे होंठों को इजाजत नहीं तेरे खिलाफ बोलने की
कसूर तो था कुछ इन निगाहों का
जो चुपके से दीदार कर बैठे
हमनें तो खामोश रहने की ठानी थी
पर बेवफा जबान इज़हार कर बैठी
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